तो क्या हमें 'बच्चों' को पूरी तरह नजरअंदाज कर देना चाहिए, उन्हें दरवाजे पर रख देना चाहिए और हर एक को अपनी खुद की एक Wohnung ढूंढ़नी चाहिए?
यानि बिना सम्मिलित निर्णय के सीधा परिणाम उनके सामने थमाना। फिर उन में से कोई एक पोता-पोती 87 साल की दादी को अपने साथ ले जा सकता है...
हाँ!
दो बड़े बच्चे तो भरण-पोषण नहीं पाते। मतलब वे अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और अपनी खुद की कमाई करते हैं। मुझे लगता है कि अपनी खुद की Wohnung लेना उचित है। सबसे छोटे को बस दोनों में से किसी एक अभिभावक के साथ रहना चाहिए। दादी की बात नई है, है ना? यह किसकी माँ है?
: क्या ऐसा नहीं होगा कि जब तक संपत्ति की किस्तें पूरी चुकती नहीं हैं, तब तक किराया उस किश्त के बराबर मांगा जाए?
कम से कम मैं तो बैंक को भुगतान पहले रोक दूंगा, ताकि स्थिति स्पष्ट हो और सीधे हार न मानूं। अगर अभी कुछ नहीं किया गया, तो आगे स्थिति बदलने की कोई वैधता नहीं रहेगी।