तो ऐसा बुरा हाल नहीं है। हमारे यहां सचमुच में शायद ही कोई देख सके, ज्यादा से ज्यादा पड़ोसी के भेड़ ही। घास के मैदान के पीछे बस कब्रिस्तान है, लेकिन वे भी ज्यादातर शांत लोग हैं, जो बाड़ के ऊपर नहीं देखते।
क्योंकि हम पहले एक अकेली जगह पर, एक अंधेरे घाटी में रहते थे, हमारे पास पर्दे नहीं थे। जब हम आए तब आखिरकार रोशनी आई, जिसे हम पर्दों से छीनना नहीं चाहते थे।
अब फिर से रोशनी का भंडार भर गया है ;)